Baba Sain Bhagat Ji History | 100% Orignal Full Life Story

Baba Sain Bhagat Ji History | माता पिता :- मुकंद रा’

F; माता जीवनी देवी जीजन्म :- संमत 1400 20 मघर की पूर्णिमा दिन रविवार ,स्थान :- सोहल ठठी

Baba Sain Bhagat JiBaba Sain Bhagat Ji History

  • माता पिता :- मुकंद राय माता जीवनी देवी जी
  • जन्म :- संमत 1400 20 मघर की पूर्णिमा दिन रविवार ,
  • स्थान :- सोहल ठठी जिला तरनतारन।
  • शादी :- साहिब देवी
  • संतान :- लड़का नई जी
  • गुरु :- रामानंद
  • अंत :- मघर के महीने एकादशी के दिन संमत 1490

साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में पंद्रह भगत सेहबान की बाणी का उल्लेख है। इन भगतो में Baba Sain Bhagat Ji का नाम भी आता है। गुरु ग्रंथ साहिब जी में आपका उचारा हुआ एक शब्द दर्ज है। आपके जीवन की बहुत सी साखीआं प्रचलित है। आप जी की एक साखी जो श्री सैन सागर ग्रंथ में आती है उसका ज़िक्र हम आपके साथ जरुर करेंगे। साखी में बताए अनुसार मुकंद राय की के गृह में कोई औलाद नहीं थी। साधु गुरीआ जी आपके गृह में भोजन करने आए। माता जी ने भोजन परोसा।

Baba Sain Bhagat Ji History

भोजन खाने के बाद साधु ने पूछा माता आपके घर में कोई बच्चा नहीं दिखाई देता। माता जी बोले बाबा जी हमारे घर कोई औलाद नहीं है। तब साधु ने भगवान के आगे बच्चे के लिए बिनती की साथ ही वह बोले आपके घर जो बाल पैदा होगा वह भगवान का भगत होगा। इस तरह साधु गुरिआ जी के बचनों से Baba Sain Bhagat Ji का जन्म हुआ। आप जी के जन्म के बाद आपको नाम देने का समय आया। उस समय में बच्चे के रंग रुप,नैण नक्श देखकर नाम रखा जाता था। भगत जी का नाम पड़ोस में रहने वाले पांधा जसु जी ने रखा। जब जसु जी ने बालक को देखा तो उन्होंने गहन शांति का अनुभव किया। उन्होंने आपका नाम साईया रखा था।

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जब आप पांच वर्ष के हुए तो आपको पढ़ने के लिए भेजा गया। आप जी का मन पढ़ाई में न लगता। आप जी बच्चो संग खेलने में लगे रहते। खेल भी ऐसे खेले जिसमे प्रभु का नाम होता। यह सब देख पाधा बहुत नाराज हुआ इसलिए उसने एक दिन आप को पढ़ाई छोड़ने को कहा। आप जी ने पढ़ाई बीच में छोड़ दी। थोड़े बड़े होने पर आप जी के पिता जी ने सोचा के बालक को किसी काम धंदे में लगाना चाहए। जब आप बारह वर्ष के हुए आप जी को आपकी भुआ शोभी के पास लहौर भेज दिया गया।

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वहां आप जी ने उस्ताद अज़ीम के पास पुछतेनी काम सीखने लगे। आप की लगन ने छह महीने में काम की पूरी महारत हांसल कर ली। उन्ही के पास काम करते समय शाहदरा का एक जलु नाम का आदमी आया। वह उस्ताद जी से बोलै के कोई लड़का हो तो बताओ हमे अपनी लड़की की शादी करनी है। उस्ताद जी ने आपकी तरफ इशारा करते हुए कहा इसे ही देख लो। भले घर का लड़का है काम भी बहुत अच्छी तरह से कर लेता है। उसी समय आप जी को भुआ जी को बुला आप जी का रिश्ता तह कर दिया गया। आप जी की शादी एक साल बाद माता साहिब देवी के साथ हुई। माता साहिब देवी का स्भाव बहुत धर्मिक और परिवार के साथ मिलनसार था।

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शादी के बाद आप जी अपने गाओ में आकर रहने लगे। परिवार का जीवन प्रभु भगति में खुशी खुशी बीतने लगा। वहीं आपके घर में एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम नई रखा गया। कुछ समय बाद आप जी ने स्वामी रामानंद जी से गुरु दिक्षा ली। यह नहीं कहा जाता है के आप जी स्वामी रामानंद जी के बारह शिष्यों में से एक थे। इस बात की पुछ्ठी भगत माल से हो जाती है। कहा जाता है के एक बार गाओ में भुखमरी फैल गई लोग अपने घर बार शोड बाहर जाने लगे। भगत जी भी अपना परिवार लेकर दिल्ली चले गए।

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वहां आप जी ने दीवान सोहन के पास नौकरी की। वहीं आप जी संतो साधुओ की संगत करते। दीवान जी ने आपको जयपुर के राजा जयपाल के पास भेज दिया। राजा जयपाल बीमार रहता था आप जी उसकी मलहम पट्टी किया करते थे। आप जी के पास संत मंडलीआ आकर रुकती। आप जी उनकी सेवा करते और भगवान के सिमरन में मगन रहते। आपजी के समय में जाति प्रथा अपनी चरम सीमा पर थी। छोटी जाती के लोगो पर धर्म के नाम पर बहुत अत्याचार किया जाता था। आप जी की महानता सुन राजे भी आपकी चरणी झुके।

 

आप जी की महानता सुन ब्र्हामन कोरिदास आपका शिष्य बनने के लिए ज़िद पर अड़ गया। अंत में आप जी पक्के तौर पर अपने साथिओ भगत नाम देव जी , धन्ना जी ,तिलोचन जी सधना जी के साथ कांशी में रहने लगे। वहीं आप जी संत साधु की सेवा करते अपना जीवन गुज़ारने लगे। अंत आप जी मघर के महीने एकादशी के दिन संमत 1490 को अकाल चलाना कर गए।

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