Bhagat Dhanna Ji Gopal Tera Aarta || Dhanna Jatt Story In Hindi

कम शब्दों में पूरा इतहास &

#x91C;ीवन काल 1415 ई : से 1475 ई bhagat dhanna ji gopal tera aarta | dhanna jatt story in hindi sikh history sikh stories

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साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में 15 भगतों की बाणी का ज़िक्र आता है। वह भगत भी ऐसे हुए जिन्होंने भगवान को अच्छी तरह से समझा। इन भगतो में भगत धन्ना जट का नाम भी शामिल है। साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की गुरबाणी में भगत धन्ना जट जी के 4 शब्द दर्ज है। भगत धन्ना जी राजस्थान के रहने वाले थे और आपजी का जीवन काल 1415 ई : से 1475 ई : रहा। आप जी का जन्म एक किसान परिवार में हुआ। आप जी के पिता जी जमीन जोध कर अपने घर का गुज़र बसर करते थे। आप जी बचपन से ही सीधे और सरल स्भाव के थे। इतहास में लिखा मिलता है की भगत जी ने भगवान को बहुत जल्दी समझा जिसके कारण उनकी जिंदगी बहुत सरल हो गई।

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इतहास में आप जी के जीवन की बहुत सी घटनाओ का ज़िक्र आता है। एक बार आप जी अपने खेत की तरफ जा रहे थे। रस्ते में टोभे के किनारे तिलोचन नाम का पंडित ठाकुर ( पथर) की पूजा कर रहा था। उसको इस तरह करते देख भगत जी पास खड़े होकर देखने लगे। भगत जी रोज गुज़रते थे वहां से लेकिन आज उनके मन ने रुकने पर मजबूर कर दिया। पंडित ने पूजा की और पथरो को समेटने में लग गया। भगत जी के मन में आया आज इस पंडित से पूछता चलु के यह पथरो के सामने हाथ की जोड़ रहा है किउ नाक रगड़ता है।

भगत जी :- क्या कर रहे हो पंडित जी ?
पंडित :- ऊपर देखता हुआ बोला !! दिखता नहीं में ठाकुर जी को पूज रहा हूँ।
भगत जी :- इधर उधर देखने लगे।
पंडित :- अपने पथरो को समेटते हुए बोलने लगा मेरे यह भगवान सबके दिल की जानता है। सब में समाए है मेरे ठाकुर। हर कण कण में मजूद है।
भगत जी :- पंडित जी भगवान इस संसार के कण कण में मौजूद है। अच्छा पंडित जी यह बताओ की में आप के ठाकुर की पूजा कर सकता हू क्या ?
पंडित :- पूजा !! तुम कैसे करोगे तुम्हे तो कोई पूजा का मंत्र नहीं आता। बंदना करनी नहीं आती। माथा टेकने का भी कोई पता नहीं तुझे।
भगत जी :- जज्ञासा के भरे बोले लेकिन पंडित जी अभी तो आप बोले की मेरे ठाकुर सबके मन की जानते है। फिर मुझे यह सब सीखने करने की क्या आवश्कता है। मेरे भक्ति भाव को तो ठाकुर जानते ही है।

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पंडित ने भी विचार को शुरु तो कर लिया लेकिन मन ही मन सोचने लगा के अब इस जट से पीछा कैसे छुड़ाऊं। भगत जी बोले पंडित जी ठाकुर मुझे दे दो अगर मेरे मन को भावना ठीक होगी तो में भगवान को अपने आप जान लूंगा। आप फ़िक्र मत करो में आपके कोई दोष नहीं आने दूंगा। पंडित अपने आप को चतुर और भगत जी को बेफकूफ समझता था। पंडित बोला धन्ने यह सौदा बहुत महंगा है। तुझे इसके बदले में एक गाए वह भी नए दूध वाली देनी पड़ेगी। भगत जी की जज्ञासा जाग चुकी थी तुरंत पंडित को हाँ कर दी। पंडित ने कल का समय दिया फिर अपनी जान छुड़ा कर वहां से निकल गया।

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घर जाकर भगत धन्ना जी ठाकुर के बारे में ही सोचते रहे। सारी रात ठाकुर की याद में ही गुज़री। दूसरे दिन पंडित अपने घर से मसाला पीसने का पथर लेकर भगत धन्ना जी की बताए स्थान पे उडीक करने लगा। भगत जी भी गाए को लेकर आ गए। वादे के अनुसार वह मसाला पीसने का पथर दिया और गाए लेकर पंडित मन ही मन बहुत खुश हुआ। सोचने लगा ऐसे मूर्ख तो हमे रोज़ मिलने चाहए।

भगत जी ने वह पथर लिया चल दिए अपने खेत के कुए के पास। वहाँ जाकर पथर को इशनान करा साफ़ जगह रख दिया। इतने में घर से भगत जी की पत्नी खाना लेकर आ गए। भगत जी ने सब से पहले खाना पथर के आगे रख बोले भगवान आप पहले भोग लगाए। भगत जी को थोड़ी पता था कि पंडित अपने हाथ से खाना ठाकुर को लगाते है। सुबह से दोपहर आ गई और दोपहर से शाम होने को आई लेकिन भगत जी ठाकुर के आगे खाना लेकर बैठे रहे। भगत जी के मन में आया की ठाकुर उनसे नाराज है जो उनके भोजन को भोग नहीं लगा रहे। भगत जी ने भी प्रतिज्ञा कर ली के जब तक ठाकुर जी कुछ नहीं खाते मै कुछ नहीं खाऊंगा। दूसरा दिन बीता फिर तीसरा इसतरह पांच दिन बीत गए। भगत जी घर भी नहीं गए घर में पत्नी से भी बोल दिया के खाना खेत में ही दे जाया करना। फिर पांचवे दिन भगवान प्रगट हुए और धन्ने को बोले धन्ने खाना लाओ बहुत भूख लगी है। इसतरह भगत जी हर समय भगवान की याद में जुड़े रहते भगवान को महसूस कर भोजन करते।

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फिर एक दिन उसी रास्ते से गुज़र रहे थे। वह पंडित रोज की तरह पूजा कर रहा था। भगत जी पंडित से बोले। पंडित तुम्हारा ठाकुर क्या खाता है ? रोटी , लस्सी जां कुछ और ? पंडित हैरान परेशान पूछने लगा यह कैसा सवाल कर दिया आज इसने। पंडित के बोलने से पहले भगत जी बोले पंडित जी पहले तो मेरा ठाकुर मुझसे नाराज था। अब मेरा ठाकुर मेरे साथ भोजन करता है मेरे साथ बातें करता है। पंडित सोचने लगा के,, है!!! हमारे बाप दादे चले गए मेरी खुद की सारी आयु बीतने को है मैने तो कभी ऐसे होते नहीं देखा न कभी किसी से सुना। पंडित बोला ऐसा कर अपने ठाकुर को बोल इस टोभे के पानी में तैर कर दिखा।

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पंडित के मन में था के पथर भी कभी पानी पर तैरते है क्या धन्ना तो पागल है।
धन्ना जी खेत में गए। ठाकुर जी से बिनती की आप जी पानी में तैर कर बताए। भगत जी के लौटने तक पंडित ने भी पूरे गांव की भीड़ जमा कर ली। भगत जी आए। ठाकुर जी के आगे बिनती की और पानी में रख दिए। पानी के बहाव में ठाकुर जी तैरने लगे। पंडित और गाओ वाले सब परेशान के ऐसा कैसे हो सकता है। पंडित बोला धन्ने में इस पथर से मसाला पीसता रहा मुझे कभी इसमें हलचल नज़र नहीं आई जे कैसे हो सकता है। पंडित यह बात नहीं समझ रहा था की प्रभु की भगति के आगे सब को नमन है और प्रभु भी भगति को नमन करते है।

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पंडित बोलै धन्ने क्या में तुम्हारे ठाकुर को छू सकता हु। भगत जी बोले हाँ हाँ जरुर आप जी ने ही तो मुझे यह ठकुर दिए है। पंडित को अपनी गलती का पश्चाताप हुआ। उसने सबके सामने भगत जी से माफ़ी मांगी। भगत धन्ना जी ने भी उसको माफ़ कर दिया। उनमे ठाकुर जी के साथ रहते रहते इतनी करुणा स्नेह भर गया था के दिल में किसी के लिए द्वेष नहीं रखते थे। भगत जी ने सबको भगवान को सच्चे मन के साथ भगति करने का मार्ग बताया। ऐसे थे हमारे भगत धन्ना जी। जिनकी भगति को हम सबका नमन है।अगर आपको यह लेख अच्छा लगा तो सबके साथ शेयर करें। किसी प्र्शन अथवा सुझाव के लिए कमेंट करके अपनी राय दे।

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