nabi sallallahu alaihi wasallam history in hindi || 100% Orignal ||

nabi sallallahu alaihi wasallam history in hindi || आज हम आपसे हज़र&#x

924; मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जी  के सम्पूर्ण जीवन को संक्षेप में हिंदी और पंजाबी में बताने का प्रयत्न करेंगे।

'ला इलाह इल्लाला, मोहम्मद रसुल्लाह

nabi sallallahu alaihi wasallam history

nabi sallallahu alaihi wasallam history in hindi

वंशज,जन्म और बचपन

एक अंदाज़ मुताबिक 2000-2500 ईसा0 पूर्व ,इलाका अरब महादीप का दुनिआ की तीन महान हस्तियों से शुरु होता है धर्म का इतिहास। विश्व के महान धर्म ईसाई,जाहूदि,और इस्लाम इनके सांझे पितामा हज़रत इब्राहिम (अलैहिस्लाम) उनकी पत्नी बीबी हाज़रा और बेटा इस्माईल को अल्लाह का हुकम मान मारुथल में जीने का आदेश दिया।हज़रत इब्राहिम (अलैहिस्लाम) के चले जाने के बाद बीबी हाजरा के अल्लाह में अथाह श्रद्धा से बेटे इस्माईल के पास चश्मा ज़मज़म फूटा। कुछ समय बाद इस ज़मज़म चश्मे के पास बीबी हाज़रा की आज्ञा पाकर जरहम कबीले के लोगो ने रहना शुरु कर दिया। जहाँ पर छोटी सी बस्ती बकाह बण गई। इस बस्ती का पहला सरदार हज़रत इब्राहिम(अलैहिस्लाम) उनकी पत्नी बीबी हाज़रा का बेटा इस्माईल बना।हज़रत इब्राहिम और हज़रत इस्माईल ने मिलकर एक “अल्लाह का घर खाना काबा” बनाया था।

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यह जगह सऊदी अरब के बहुत बड़े और पवित्र शहर मक्का के नाम से जानी जाती है। हज़रत इस्माईल की शादी बनु जरहम कबीले के सरदार मदाद के बेटे उमरु की लड़की के साथ हुई। इस जोड़े को 12 बेटे हुए जो आगे चलकर 12 कबीलो के संस्थापक बने। आप के दूसरे बेटे क़दार की 37 पुछतो तक पवित्र खाना काबा मक्का (अल्लाह का घर) की देख रेख की। 207 ई: में बनु जरहम कबीले ने पवित्र खाना काबा पर कब्ज़ा कर लिया। बनी इस्माईल (इस्माईल की औलाद) को वहां से जलावतन कर दिया। 440 ई: में बनी इस्माईल के एक शूरवीर कुलाब के बेटे कुसी ने अपनी सूझ बूझ से पवित्र मक्का के शाषन को दुबारा हाँसल कर लिया। उसने एक कुरैशी संसद बनाई। 480 ई : में कुसी को मृत्यु के बाद उसके पुत्रो अब्दुल दार ,अब्दुल मुनाफ को पवित्र खाना काबा मक्का (अल्लाह का घर) की देख रेख की जिमेवारी मिली।अब्दुल मुनाफ के बाद उसका बेटा हाशम कुरैश का मुखी बना।हाशम के बाद उसका बेटा अब्दुल मुत्तलिब कुरैश का मुखी बना। आप के 10 बेटे हुए।

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अब्दुल मुत्तलिब के हज़रत अब्दुला सबसे लाड़ले बेटे थे। उनकी शादी बनु येहरा कबीले के सरदार वेहब की लड़की आमना के साथ हुआ। हज़रत अब्दुला की शादी के कुछ देर बाद मृत्यु हो गई और वह अपने पीछे गर्भवती पत्नी ,एक दासी ,पांच ऊँठ, बकरिओ का ईजड छोड़ गए।हज़रत अब्दुला की मृत्यु के लगभग 2 महीने बाद बीबी आमना की कोख से nabi sallallahu alaihi wasallamजी” का जन्म हुआ। nabi sallallahu alaihi wasallam जी” का जन्म तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान् 12 रबीउल अवल दिन सोमवार मानते है और कुछ 9 रबीउल अवल मानते है जो ईस्वी 22 /25 अप्रैल 571 ई: बनती है। आपका बचपन में नाम अहमद रखा गया। आपके दादा अब्दुल मुत्तलिब को जब आपके जनम का पता लगा तो वह खुश हुए और आपको उठा खाना काबा में लेकर गए। वहाँ आपका नाम उन्होंने महोमद रख दिया। आपके चाचा ने भतीजे की खुशी में अपनी दासी को आज़ाद कर दिया और उसको बहुत ईनाम भी दिए। उन दिनों की रिवाज़ के अनुसार आपको दूध दासी सोहाबिया ने पिलाया और फिर आपको दूध पिलाने के लिए दाई हलीमा को सपुर्द कर दिया गया।

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बीबी हलीमा के पास 4 साल

nabi sallallahu alaihi wasallam जी ने अपनी ज़िंदगी के 4 साल बीबी हलीमा के पास बिताए। बीबी हलीमा जी को पहले 2 साल के लिए आपकी परवरिश के लिए बोला गया था लेकिन जब वह आपको छोड़ने गए तो उन दिनों वहां प्लेग की बीमारी फैली थी तो आपको 2 साल और बीबी हलीमा के पास रहने दिया गया। बीबी हलीमा अरबी भाषा को बहुत शुद्ध जानते थे।यहां रहकर ही आपने शुद्ध अरबी बोलनी सीखी।बीबी हलीमा के बच्चो के संग बकरिओं को भी चरने लेकर गए।

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आपकी माता बीबी आमना जी के पास

4 साल बीतने पर आपके सत्कारयोग माता बीबी हलीमा जी आपको आपकी माता बीबी आमना जी के पास छोड़ गए। जब आप 6 साल के हुए तो आपको आपकी माता बीबी आमना जी मदीने लेकर गए वहां आपने तैरना सीखा। वहां आप 1 महीने तक रुके। वहां आपको आपके पिता जी की मृत्यु के बारे में पता चला। आपके पिता जी की कबर देख माँ निढाल सी हो गई। मदीने से मक्का वापस आते समय अबवा नाम के स्थान पर माँ ने भी प्राण त्याग दिए। उस समय आपके साथ एक दासी थी। आप उस उजाड़ में अकेले थे। दासी ने इधर उधर देख कुछ कबीलो की मदद से माँ (बीबी आमना जी) को वहीं दफना दिया।

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आपको लेकर वह आपके दादा अब्दुल मुत्तलिब के पास आए। रास्ते में माँ की जुदाई के बारे में बताया। दादा(अब्दुल मुत्तलिब) को यह सब सुनकर बहुत दुःख लगा। आपके दादा जी(अब्दुल मुत्तलिब) ने आपको माँ और पिता जी कमी महसूस न होने दी। उन्होंने ने अपने स्वास छोड़ने से पहले आपकी परवरिष की ज़िम्मेदारी अपने दूसरे बेटे अबू तालिब को दे दी। 579 ई: में आपके दादा की मृत्यु हो गई। आपकी आयु उस समय 8 साल की थी। आपकी परवरिश की जिमेवारी अबू तालिब ने बहुत अच्छे से निभाई। उन्होंने ने आपको अपने बेटे की तरह रखा।वह हर जगह आपको अपने साथ रखते। उन दिनों पढ़ाई लिखाई ज़्यादा नहीं होती थी उल्टा जिसके पास जितने ज्यादा जानवर होते थे उसको उतना ही अमीर माना जाता था। आप ने भी अपने चाचा के पास रहकर बकरिआँ चराई।

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व्यापारिक यात्रा और बहीरा का पहचानना

हर साल गर्मिओ में मक्का वालो का बहुत बड़ा वपार्क काफला शाम की तरफ जाया करता था। यह लोग मक्का से चमड़ा और खजूर लेकर जाते थे वापस आते जे वहां से अनाज ,और समान लेकर आते थे। nabi sallallahu alaihi wasallam जी” जब इस काफ्ले के साथ गए तो उनकी आयु 12 थी। रास्ते की कठनाई की वजह से आप के चाचा अबू तालिब आप को साथ नहीं लेकर जाना चाहते थे लेकिन आप ने साथ जाने की ज़िद की। शाम की तरफ जाते समय जब काफला बुसरा नाम की पहाड़ी के पास रुका तो पास ही एक ईसाई डेरा था जिसमे बहीरा नाम का एक विद्वान् रहता था। उसने देखा सब लोग शाया में बैठे है और इस 12 साल के लड़के को कोई शाया में जगह नहीं मिली तो वह धुप में ही बैठ गया। वह उस वक्त परेशान हो गया जब एक बादल ने आकर nabi sallallahu alaihi wasallam जी पर शाया कर दी। वह बादल एक जगह ही रुका रहा। उससे यह सब देख रहा न गया।

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उसे बाईबल में लिखी nabi  की निशानी याद आने लगी। उसने काफ्ले को भोजन पर बुलाया। खाना खाने के बाद उसने पूछा की यह किसका बेटा है। तो अबू तालिब बोले जी मेरा। जब उन्होंने ने आप की पीठ पर हाथ लगाया तो उन्होंने ने एक मास के टुकड़े जैसा उभार महसूस किया। यह खत्मे नवब्बत की मोहर थी। वह बोले मेरी विद्या के अनुसार इस लड़के के पिता जी जीवत नहीं है तो चाचा ने सारी बात बताई।बहीरा विद्वान् ने nabi sallallahu alaihi wasallam जी की पहचान कर ली। चाचा अबू तालिब को आपको आगे लेकर जाने से मना कर दिया। कारण पूछने पर उन्होंने यहुदीओ के नुकसान पोहचाने की बात बताई। इस तरह चाचा अबू तालिब जी वहां पर समान बेच मक्का वापस आ गए।उसके बाद आप ने नज़द ,यमन ,बेहरीन और शाम की तरफ की यात्रा के सीरत की पुस्तकों में परमाण मिलते है। आप अपने व्यापार में सबके साथ मीठा ठहराव के साथ बोलते। सच बोलते इसके कारण सब आप को बहुत पसंद करते थे।

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शादी

nabi sallallahu alaihi wasallam जी अपने वयवहार के कारण सादक करके जाने लगे। सब लोग आपसे बहुत प्यार करते थे। उन दिनों आप की व्यापार यात्रा की हर जगह चर्चा रहती थी। शाम की तरफ जाने वाले काफ्ले में बीबी ख़दीजा जी का बहुत बड़ा व्यापार का हिस्सा होता था। बीबी ख़दीजा 2 बार विध्वा हो चुकी बहुत ही सत्कारयोग इस्त्री थी। बीबी ख़दीजा जी उन दिनों बहुत अमीर और सफल व्यापारी थी। जब उनके कानो में आपकी तारीफ पड़ी तो उन्होंने आपको व्यापार काफ्ले का नेतृत्व करने का न्यौता भेजा।

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nabi sallallahu alaihi wasallam जी” ने अपने चाचा अबू तालिब से मशवरा कर न्यौता स्वीकार कर लिया। बीबी खदीजा ने आप के साथ इस यात्रा में अपने खास लोग भेजे। जब काफला वापस आया तो सब ने आप की बीबी खदीजा के पास बहुत प्रशंसा की। इस बार काफ्ले की कमाई भी दुगनी थी। बीबी खदीजा ने लगातार आपके साथ 2 साल व्यापार सांझ रखी। उन्होंने देखा की आप हर खुशी ,गम में एक से ही रहते थे। बीबी खदीजा को बहुत बड़े बड़े घरानो के रिश्ते आए थे लेकिन उन्होंने अपने बच्चो को पालने में ही समर्पित कर दिया था। आपके वयवहार ने बीबी खदीजा का विचार बदल दिया। बीबी खदीजा ने आपको अपनी सहेली अनीसा हाथो शादी का न्यौता भेजा।

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आपने अपने चाचा तथा सके सम्बंदिओ से मशवरा कर शादी का न्यौता मंजूर कर लिया। 25 साल की उम्र में ,सं :595 ई: nabi sallallahu alaihi wasallam जी की शादी 40 साल की बीबी खदीजा से 500 दरहम: मेहर सम्पंन हुई। इस निकाह का उपदेश चाचा अबू तालिब ने पढ़ा। शादी के बाद आपके घर बीबी खदीजा को कोख से 2 बेटे,4 बेटिआ पैदा हुई।फिर शादी के बाद 25 सालों तक दोनों केवल एक दूसरे के ही साथ रहे। बीबी खदीजा के जाने के बाद आप ने 10 और शादीआ की। आपकी आखिरी बीवी आयशा थी।

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खाना काबा का नव-निर्माण

खाना काबा पूरे अरब का धर्म का केंद्र था। लेकिन खाना काबा की ईमारत पुरानी होने के कारण खराब हो गई थी। एक तो ईमारत बहुत पुराणी दूसरा वहां पर जब बारिश आती तो पानी जमा हो जाता। जिसके कारण आने वाले हाजिओ को बहुत दिकत आती। nabi sallallahu alaihi wasallam जी की उम्र उस समय 35 साल थी। इन सभ के बावजूद कोई भी खाना काबा की ईमारत को हाथ नहीं लगाना चाहता था किउंकि अब्राह की सैना का अंत देखने वाले कुछ लोग अभी भी जिन्दा थे। सब कबीलो ने मशवरा किया कि सब अपनी अपनी एक एक दिवार बनाएगे। सब सब ने अपने अपने हिस्से की दिवार बहुत बखूबी बनाई। लेकिन जब पवित्र पत्थर “हजरे अस्वद” की स्थापना की समय आया तो सब कबीले चाहते थे की यह अवसर उन्हें मिले। बात लड़ाई झगडे तक चले गई। ऐसा 5 दिन तक चलता रहा। वहां मजूद अब्बू आमुईया ने कहा जो बी पहले “बाबे सफा” से खाने काबे में परवेश करेगा उसको जज बना लिया जाए। सभी मान गए। कुछ समय बाद अंदर परवेश करने वाले पहले स्थान पर nabi sallallahu alaihi wasallam जी” थे।

उस समय सभ लोगो ने अमीन कहा। nabi sallallahu alaihi wasallam जी” को इसका ईलम न था। आपने बहुत तरीके से पवित्र पत्थर उठा एक चादर में रखा और सब कबीलो को बोले के इसे सब उठाओ। जब स्थापना की जगह आई तो nabi sallallahu alaihi wasallam जी” खुद पवित्र पत्थर “हजरे अस्वद” की स्थापना की। आपके इस फैसले ने बहुत बड़े झगडे को खत्म कर खाना काबा का काम सम्पूर्ण करवाया।

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nabi sallallahu alaihi wasallam जी” ने हिरा गुफा के अंदर 33 साल से लेकर 40 साल तक कठिन तप किया जिसे इस्लाम में मुराक़बे कहते है। 12 फरवरी 610 ई: वहां आपको हज़रत जिब्राएल अल्लाह की तरफ से मुबारकबाद दी। उसके बाद हज़रत जिब्राएल ने समय समय पर आकर पवित्र क़ुरान की आयते आप को बताई (नाज़िल) हज़रत जिब्राएल आपके सामने अनेको बार आए।1,400 साल हो गए लेकिन इस संदेश में जरा भी रद्दोबदल नहीं हुआ।जब आपको अल्लाह की तरफ से हज़रत जिब्राएल ने आयते लाकर दी तो आपने कुरेश और अनय लोगो को इसके बारे में बताया तो किसी ने भी आप पर विश्वास नहीं किया।

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सब लोगो ने आपको पागल तक कहा। जहां तक देखा जाए तो आपको जान से मारने के भी बहुत यतन किए गए,आपका बाईकाट तक कर दिया गया। लेकिन अल्लाह ने आपकी हमेशा हिफाजत की। पहले 3 साल तक आप पर ईमान लाकर 40 के करीब मुसलमान हुए। बाईकाट जब खतम हुआ तो आप के अपने आपको शोड कर अल्लाह के पास चले गए। 620 ई: में आपके प्यारे चाचा अबू तालिब की मृत्यु होगई। अभी उनकी जुदाई का गम भूले नहीं थे आप पर एक और कहर ढह पड़ा। 2 महीने बाद आपके हमसफ़र बीबी खदीजा भी स्वर्गवासी हो गए। उसके बाद तो मानो आप पर दुखो के पहाड़ जैसे टूट पड़े। आपके साथ दुश्मनी रखने वाले आप पर हावी होने लगे। नतीजन आपके पकड़ने वाले को 100 ऊंटनी देने का एलान हो गया। आपको हिज़रत करकर वह स्थान शोड्कर मदीना जाना पड़ा जहां से आपको बहुत प्यार मिला था। हिज़री केलिन्डर भी जहां से ही शुरु होता है। हिज़रत के समय आप सोर गुफा में 3 दिन तक रुके। आपके पीछे दुश्मन की फौज थी तो आपने मदीने अलग रास्ते से गए। यह समय 13 सतंबर 622 ई: की बात है।

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हिज़रत के पहले साल (622 ई:-623 ई): को आपके साथ बहुत से लोग मुसलमान हुए। वहां रहकर आपने इस्लाम का खुलकर प्रचार किया। बहुत से कबीले भी आपके साथ सहमत हो गए। 20 सतंबर 622 ई: को आपने कुबा आकर सबसे nabi sallallahu alaihi wasallam historyपहले मस्जिद की निर्माण करवाया। सबसे पहले हदम के बेटे कलसूम से ज़मीन लेकर अपने हाथो से पहली मस्जिद का निर्माण करवाया। मदीने आकर आपके साथ बहुत से लोग मुसलमान हुए। यह सब मक्का के लोगो को बहुत चुभा। इस कारन उन्होंने आप पर बहुत बड़े हमले किए लेकिन वह सफल ना हो सके। हर बार उनको मुँह की खानी पड़ी। इस दौरान ईस्लाम बहुत बड़ी ताक़त बन चूका था। इस ताकत की वजह थी nabi sallallahu alaihi wasallam जी” का सबसे एक सा प्यार और एक अल्लाह को याद करना। nabi sallallahu alaihi wasallam जी” और मुसलमानों पर लगातार हमलों के बावजूद इस्लाम हर रोज फैलता जा रहा था। आखिर में थक हार कर मक्के के अनेक क़बीलों ने nabi साहब के साथ समझोता कर लिया। यह समझोता “सुलह-ए-हुदेबिया” के नाम से मशहूर है।

इसी तरह अल्लाह की याद में आपके बाकी समय गुज़ारा। 10 हिजरी( 22 फरवरी 632 ई) का समय आया। आपने हज अदा किया । आपके इस अन्तिम हज में एक लाख चौबीस हज़ार मुस्लमान शरीक हुये जो अपने आप में एक बहुत बड़ी संख्या थी । इसी हज का खुत्बा(बयान)आपका आखिरी वाज़ (धार्मिक बयान) था । आपने अपने खुत्बे(धार्मिक बयान) में जुदाई की तरह भी इशारा कर दिया था। इसके लिये इस हज का नाम “हज्जे विदाअ” भी कहा जाता है।

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देहांत

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11 हिजरी में 29 सफ़र को पीर के दिन एक जनाज़े की नमाज़ से वापस आ रहे थे की रास्ते में ही आपके सर में दर्द हुआ । आपको बहुत तेज़ बुखार आ गया शरीर में कमज़ोरी सी महसूस होने लगी।इस बीच बेहोशी आने लगी। इन्तिकाल से पांच दिन पहले आपने सात कुओं के सात मश्क पानी से गुस्ल (स्नान) किया। यह बुध का दिन था। जुमेरात(शुक्रवार) आपने तीन वसिय्यतें फ़रमायीं । एक दिन अपने चालीस गुलामों को आज़ाद किया । सारी नकदी दान कर दी।
अन्तिम दिन पीर (सोमवार) का था । इसी दिन 8 जून 632 ई: (12 रबीउल अव्वल 11 हिजरी) चाश्त के समय आप इस दुनिया से रुख्सत कर गये । चांद की तारीख के हिसाब से आपकी उम्र 63 साल 4 दिन की थी।आपकी नमाजे-जनाज़ा किसी ने नही पढाई। सभी बारी-बारी, चार-चार, छ्ह:-छ्ह: लोग आइशा रजि० के घर (हुजरे) में जाते थे और अपने तौर पर पढकर वापस आ जाते थे । यह तरीका हज़रत अबू बक्र (र.अ.) ने सुझाया था । इन्तिकाल के बाद हज़रत आइशा रज़ि० के कमरे में जहां nabi sallallahu alaihi wasallam जी” इन्तिकाल फ़रमाया था दफ़न किये गये ।

“ओह अल्लाह, अर-रफ़ीक अल-अल्ला”

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