Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi

Shri Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi | गुरु जी बोले भाई मखन शा

;ह ऐसा नहीं चलेगा। मखन शाह अवाक् रह गया।जन्म से शहीदी तक की दास्तां।

Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi

  • माता पिता :- माता नानकी जी ,गुरु हर गोबिंद साहिब जी ,
  • जन्म स्थान :- अमृतसर
  • जन्म तिथि :- 1 -4 -1621 ई : , 5 वैसाख वदी 5 ,संमत 1678
  • धर्मपत्नी :- गुज़री जी
  • संतान :– गोबिंद राय जी
  • गुरयाई :- 20 -3 -1665 ई : , 24 चैत्र सुदी 14 , संमत 1722 ( 11 वर्ष )
  • नगर स्थापित किए :- श्री आनंदपुर साहिब ( 1666 ई :,) ,गुरु का लहौर , बिभोर साहिब
  • जोति जोत :- 11 -11 -1675 ई :, ( 12 मघर , सुदी 5 ,संमत 1732 , सीसगंज दिल्ली )
  • बाणी रची :- कुल 115 शब्द और श्लोक 15 रागो में।
  • आयु :- 54 साल
  • आपके समय के हुक्मरान :- ओरंगजेब

Shri Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi

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जन्म और बचपन Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi

साहिब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी जिनको हिन्द की चादर भी कहा जाता है। गुरु हरगोबिंद साहिब जी के गृह में पांच पुत्र और एक पुत्री हुए। गुरदित्ता जी ,अणि राय, अटल राय, तेग बहादुर , सूरज मल ,बीबी वीरो जी। आप जी के जन्म पांचवे पुत्र के रुप में हुआ। आप जी का जन्म 1 -4 -1621 ई : , (5 वैसाख वदी 5 ,संमत 1678 ) दिन शुक्रवार को माता नानकी जी ,गुरु हर गोबिंद साहिब जी ,के गृह अमृतसर में हुआ। कुछ विद्वान् आपका नाम त्याग मल भी लिखते है लेकिन आपको गुरु तेग बहादुर जी के नाम से जाना जाता है। घर में गुरु पिता से सब भाईओ से ज्यादा आपको प्यार और स्नेह मिला। आपको बड़ी बहन आपको लाड लड़ाती ,दूसरे बड़े भाई अति प्रेम करते थे। बचपन से आप इतने शांत चित थे मानो जन्म से पहले ही ब्रहम को जान कर आए थे। थोड़े बड़े होने पर आपको विद्या सिखाने का प्रबंद किया गया। भाई गुरदास जी ने आपको अक्षर ज्ञान और बाबा बुढ़ा जी ने कृत की महत्ता का ज्ञान आपको दिया। शास्त्र विद्या आपको भाई जेठा जी ने सिखाई। बचपन से ही आपका स्भाव बहुत शांत था जहां बड़े भाई कार्य प्रबंध देखते वहीं आप जी नाम सिमरण को ज्यादा महत्त्ता देते। भोजन बहुत कम खाते हर समय प्रभु भक्ति में लीन रहते। आप जी जो कहते थे उस वाक्य पर अडोल रहते थे।

शादी और संतान Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi

आप जी अक्सर गुरु पिता जी के साथ जंग और युद्धों में हिसा लेते थे। तीसरी जंग के समय आप जी नथाने से कीरतपुर आए। वहां ही आपका भाई लाल चंद और बीबी बिशन कौर की सपुत्री बीबी गुज़री के साथ रिश्ता कर दिया गया। आप जी की शादी 1632 ई : को करतारपुर में हुई। शादी में मिलनी के समय भाई लाल चंद को गुरु जी ने खुद अपनी सीने से लगाया। अपने पिता जी से मिली सीख को बीबी गुज़री ने बहुत अच्छी तरह निभाई। ऐसी आत्मा जो खुद शहीद , जिनका पती शहीद ,जिनका पुत्र शहीद ,जिनके चार पोत्रे शहीद , जिनका भाई किर्पाल चंद शहीद ,जिनके पांच ननोतरे शहीद , ऐसी महान आत्मा थे बीबी गुज़री जी। आप जी के गृह में गुरु गोबिंद सिंह का जन्म शादी के 27 साल बाद 22 दसंबर 1666 ई : ( पोह सुदी सप्तमी संमत1723 बिक्रमी )दिन बुधवार समय आधी रात के बाद ( भट्ट वहीआ में लिखे अनुसार ) को पटना साहिब ( बिहार प्रांत की राजधानी ) में हुआ। पुत्र के जन्म के समय आप जी सिखी के प्रचार के लिए बाहर गए थे और बीबी गुज़री के भाई किर्पाल चंद जी उस समय नए जन्मे बालक के पास थे।

गुरता का मिलना Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi

गुरु पिता साहिब श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने बाबा गुरदित्ता जी के छोटे सपुत्र गुरु हर राय जी को गुरता संभाल दी उस समय उनकी आयु 14 वर्ष थी । भाई भाना जी जो बाबा बुढ़ा जी के सपुत्र थे उन्होंने यह रस्म निभाई। कुछ समय बाद गुरु पिता जी जोय्ति जोत समा गए। आप जी बाबा बकाले रहने लगे। यहां हम आपको यह बताना बहुत जरुरी समझते है की गुरता की जिमेवारी भगति और लगन देख कर ही सौंपी गई। किसी को भी गुरता पिता पुर्खी विरासत में नहीं मिली। गुरु हर राय जी ने 6-10-1661 ई : को गुरु हरकृष्ण को गुरता गददी संभाल दी। आप जी बाबा बकाले में रहकर धर्म कर्म के कार्य करते। संगत को गुरबाणी के साथ जोड़ते। कुछ समय बाद गुरु हरकृष्ण जी भयानक बीमारी की चपेट में आ गए। गुरु जी ने राजा जय सिंह का महल छोड़ जमना के पास आ डेरा किया। बीमारी का पता चलते बहुत सी संगत आपके पास जुड़ने लगी।

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आप जी ने सभी को गुरबाणी के साथ जुड़ने का उपदेश दिया। गुरु घर की चलती मर्यादा के अनुसार आप जी ने पांच पैसे मंगवाए और हाथो से परकर्मा कर बोले ” बाबा बकाले ” में फिर पांच पैसे और नारियल भाई दरगाह मल को सौंप दिया । गुरु जी 30-3-1664 ई :, ( 3 वैसाख ,चैत्र सुदी 14 ,संमत 1721,भोगल दिल्ली ) जोय्ति जोत समा गए। चार महीने मसंद और गुरु घर के दोखी अपने आप को गुरु समझने लगे। भाई मखन शाह लुबाणा 6 -10 -1664 ई : को बाबा बकाले आया। उसने मंनत के अनुसार सभी अपने आप बने गुरुओं को एक एक मोहर रखकर सिजदा किया। जब वह गुरु तेग बहादुर के पास आया तो दो मोहरे रख सिजदा करने लगा। गुरु तेग बहादुर जी बोले भाई मखन शाह ऐसा नहीं चले गए जितने का वादा था उतनी मोहरे दो। मखन शाह अवाक् रह गया ,बाहर आकर कहने लगा गुरु लाधो रे ,गुरु लाधो रे। इसतरह आपजी को 20 -3 -1665 ई : , 24 चैत्र सुदी 14 , संमत 1722 में गुरता मिली।

बाणी और नगर स्थापित किये Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi

साहिब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने पूरी जीवन काल में 59 शब्द ,दोहरा समेत 57 श्लोक रचे जो की गुरु ग्रंथ साहिब जी में दर्ज है। आप जी ने राग जेजावंती में गुरबाणी की रचना की। आप जी ने बाबा गुरदित्ता जी को साथ लेकर हंडूर के स्थान पर एक नगर की नीव रखी जिसका नाम कीरतपुर साहिब रखा गया। गुरु पिता की आज्ञा लेकर आप जी खंडूर में रहने लगे। आप जी जब राजा तारा चंद के पुत्र दीप चंद की अंतिम क्रिया रस्म पर गए तो दीप चंद की रानी ने आपको माखोवाल का गांव देने की भेंट की तो आप ने उसे बगैर कीमत दिए लेने से इंकार कर दिया। आप जी ने 500 रुपए देकर माखोवाल गांव के पटा ( कागज ) अपने नाम करवाया। 19 जून 1665 ई : 21 हाड़ 1722 बिक्रमी को बाबा गुरदित्ता जी से चक नानकी नगर की नीव रखाई। इसी नगर को अनंदपुर साहिब से नाम से जाना जाता है। आप जी ने गुरु का लहौर , बिभोर साहिब की स्थापित किये।

जोय्ति जोत Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi

ओरंगजेब ने अपने पिता को कैद कर दिल्ली के शाशन पर जबरन कब्जा जमा लिया। राज गद्दी पर बैठते ही उसने ईस्लाम को छोड़ बाकी सब धर्म के लोगो पर अत्याचार करने शुरु कर दिया। उसने अपने भाई बारी बारी से खत्म किए। सनक की ऐसी हद अपने पुत्र को जहर देकर मरवा दिया। उसने कश्मीर के पंडितो से जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाना चाहा पर वह अपनी जान बचाकर पंजाब की तरफ भागे। कुछ पंडित तो उसके दिए लालच को लेकर धर्म परिवर्तन कर गए लेकिन कुछ उसके सामने विरोध करने लगे। पंजाब आए जथे की अगवाई पंडित किरपा राम कर रहे थे। उन्होने ने ओरंगजेब के जुल्मो की दास्तां गुरु दरबार में सुनाई। अंत आप जी ने यह निर्णया लिया कि कोई बड़ा शूरवीर बलीदान दे। उस समय पास बैठे आप जी के सपुत्र गोबिंद राय जी बोले के आपसे बड़ा इस दुनिआ में शूरवीर कहाँ है। दिल्ली जाने से पहले आप जी 8 जुलाई 1675 ई: को गुरता की जिमेवारी गोबिंद राय जी को संभाल दी। आगरा में आपकी ग्रिफ्तारी हुई कुछ दिन आप पर बहुत तशदद किए गए। तशदद के कुछ दिन बाद 11 नवंबर 1675 ई: को आपको शहीद कर दिया गया।

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