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History Of Guru Arjan Dev Ji in Hindi Language || 101 % Orignal आप जी ने अपनी तमाम ज़

िंदगी गुरु चरणों में अर्पित कर दी।हिंदी,पंजाबी में जानकारी कम शब्दों

History Of Guru Arjan Dev Ji in Hindi Language

History Of Guru Arjan Dev Ji in Hindi Languageमाता पिता :- बीबी भानी जी , गुरु रामदास जी

  • जन्म स्थान :- गोइंदवाल जिला अमृतसर
  • जन्म तिथि :- 15 -4 -1563 ई : , 16 वैसाख वदी 7 , संमत 1620
  • धर्मपत्नी :- गंगा जी
  • संतान :– हरगोबिंद साहिब जी ,
  • गुरयाई :- 1 -9 -1581 , 2 अस्सु संमत 1638 ( 25 वर्ष )
  • नगर स्थापित किए :- छेहरटा (1595 ई : ) ,गोबिंदपुर ( 1587 ई : ), तरनतारन ( 1590 ई : ),करतारपुर ( 1593 ई : ),
  • जोति जोत :- 30 -5 -1606 ई : (जेठ सुदी 4 संमत 1663 , लहौर , पाकिस्तान )
  • बाणी रची :- गाउडी सुखमनी ,मांझ बारामह , बावन अखरी , , कुल 2218 शब्द , 30 रागो में।
  • आयु :- 43 साल
  • आपके समय के हुक्मरान :- ,अकबर, जहांगीर ,

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जन्म और बचपन

श्री गुरु अर्जन देव जी महाराज श्री गुरु नानक देव जी महाराज के पांचवे स्वरुप हुए। सिख धर्म में आप की महान शहीदी का बाद एक नया अध्याय शुरु हुआ। आप जी का पावन प्रकाश 15 -4 -1563 ई : , 16 वैसाख वदी 7 , संमत 1620 को बीबी भानी जी , गुरु रामदास जी के घर गोइंदवाल जिला अमृतसर में हुआ। आप जी के दो भाई थे। पहले प्रिथी चंद और दूसरे महादेव जी आप जी ने अपने 11 साल गोइंदवाल में बिताए। आप जी ने अपने नाना जी गुरु अमरदास जी की गोद का आंनद और उनसे बहुत सी आशीष ली। गुरु अमरदास जी से आप जी ने गुरु अंगद देव जी का इतहास सुना। पिता जी को गुरता का मिलना और परिवार में हुई बगवात से बहुत हल चल सी मची। आप जी ने गुरमुखी ,संस्कृत ,देवनगरी ,घोड़सवारी सब विद्याओ में अच्छी महारत हांसिल कर लिया। आप जी के चेहरे पर इतना नूर था की देखने वाला आपका मुरीद हो जाता। आप जी एक उम्दा किस्म के आर्किटेक ,लेखक ,वक्ता ,छत्री ,सभी किस्म के गुणों से युक्त शख्सियत थे। आप जी ने बाबा बुढ़ा जी के दर्शन भी किये।

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शादी और संतान

आप जी की शादी 11 वर्ष की आयु में गाओं माओं जिला जलंधर ( दोआबा ) के रहने वाले भाई कृष्ण चंद जी की सपुत्री बीबी राम देई ( गंगा देवी जी) से हुई। कुछ समय के बाद आपजी गुरु पिता जी की आज्ञा से लहौर चले गए। आप जी ने लहौर जाकर धर्म कर्म कर्या किए ,लंगर लगाए लेकिन गुरु पिता जानते थे की एक दिन ऐसा भी आएगा जब यही लहौर सचाई के लिए खून आहुति मांगेगा। आप जी के घर गुरु हरगोबिंद साहिब जी का प्रकाश 2 जून 1595 ई : को बाबा बुढ़ा जी के बचनों से हुआ।

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गुरता का मिलना

आप जी को गुरता मिलने से पहले आप की भी गुरु पिता ने पर्ख की ठीक वैसे ही जैसे गुरु नानक देव जी ने गुरु अंगद देव जी की। एक दिन लहौर से गुरु पिता को शादी न्योता आया। गुरु पिता ने बड़े भाई प्रिथी चंद से शादी में जाने जाने के लिए बोलै। उन्होंने काम का हवाला देकर जाने से मना कर दिया। महांदेव से पूछा तो वह बोले के मै मोहमाया से दूर रहता हूँ। जब आपसे पूछा तो आपने जाने के लिए हाँ कर दी। शादी होने के बाद आपको गुरु जी बुलाया 1 -9 -1581 , 2 अस्सु संमत 1638 ( 25 वर्ष ) को गुरता की जिमेवारी दी। गुरता की जिमेवारी मिलने के बाद गुरु रामदास जी अमरदास जी से मिली आयु को संपूर्ण कर सचखंड चले गए। आपके भाईओ ने आपका विऱोध किया लेकिन आपकी भगति के आगे वह टिक नहीं पाए। आप जी ने गुरु घर की मर्यादा को इन बिन निभाया।

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बाणी और नगर स्थापित किये

आप जी ने गुरता मिलने के बाद छेहरटा (1595 ई : ) ,गोबिंदपुर ( 1587 ई : ), तरनतारन ( 1590 ई : ),करतारपुर ( 1593 ई : ), नगर वसाए। सबसे बढ़कर जी ने हरमंदिर साहिब का निर्माण करवाया। आपजी ने नींव साई मियाँ मीर से रखवाई। यह हरमंदिर वैसे ही बणवाया जैसा गुरु अमरदास जी बता कर गए थे। हरमंदिर साहिब में चार दरवाजे चारों दिशाओ में बनवाए। सभी धर्मो और जातिओ के लिए आप ने ऐसा किया। हरमंदिर साहिब की मर्यादा बनाई जो आज भी वैसे की वैसे निभाई जा रही है। आप जी ने तमाम ज़िंदगी में गाउडी सुखमनी ,मांझ बारामह , बावन अखरी , , कुल 2218 शब्द , 30 रागो में बानी रची। सब से बढ़कर आप जी ने सभी गुरु साहिबान की बानी एकत्र कर गुरु ग्रंथ साहिब जी का सरुप संपादित करवाया।

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जोति जोत

आपके समय का हुकमरान गुरु से बहुत नफरत करता था। उसने आप जी को 30 -5 -1606 ई : (जेठ सुदी 4 संमत 1663 , लहौर , पाकिस्तान ) शहीद करवा दिया। विस्तार से यहां पढ़े।

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